सत्यं बद् ! ॐ तत्सत् धर्मं चर !!
'भगवत् कृपा हि केवलम्'(Only the Mercy of GOD)
ऋते ज्ञानान्न मुक्ति: -- ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं !(No Salvation without KNOWLEDGE)
परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का उद्देश्य –
"मेरा उद्देश्य आप समस्त सत्यान्वेषी भगवद् जिज्ञासुजन को दोष रहित, सत्य प्रधान, उन्मुक्तता और अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवन विधान से जोड़ते-गुजारते हुये लोक एवं परलोक दोनो जीवन को भरा-पूरा सन्तोषप्रद खुशहाल बनाना और बनाये रखते हुये धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ जिसके लिये साक्षात् परमप्रभु- परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान अपना परमधाम (बिहिश्त-पैराडाइज) छोड़कर भू-मण्डल पर आते हैं, आये भी हैं, में लगना-लगाना-लगाये रखना है । माध्यम और पूर्णतया मालिकान तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान वाले खुदा-गॉड-भगवान का ही होगा-रहेगा।किसी को भी पूरे भू-मण्डल पर ही इस परम पुनीत भगवत् कार्य, जिसका माध्यम और मालिक भी साक्षात् खुदा-गॉड-भगवान ही हों, में जुड़ने -लगने -लगाने-लगाये रखने में जरा भी हिचक नहीं होनी चाहिये । खुशहाली और प्रसन्नता के साथ यथाशीघ्र लग-लगाकर ऐसे परमशुभ अवसर का परमलाभ लेने में क्यों न प्रति स्पर्धात्मक रूप में अग्रसर हुआ जाय ? न कोई जादू, न कोई टोना- न कोई मन्त्र, न कोई तन्त्र । सब कुछ ही भगवत् कृपा रूप तत्त्वज्ञान रूप सत्य ज्ञान के माध्यम से । वेद-उपनिषद्-रामायण-गीता- पुराण-बाइबिल- कुर्आन- गुरुग्रन्थ साहब आदि-आदि सद्ग्रन्थीय सत्प्रमाणों द्वारा समर्थित और स्वीकृत विधानों से ही कार्यक्रम चल-चला रहा है और चलता भी रहेगा। मनमाना कुछ भी नहीं। लोक लाभ परलोक निबाहू और श्रीराम जी वाला जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन हृदयँ दृढ़ गहहू॥ को अपने जीवन में व्यवहारित बनाते हुये उसी प्रकार से वर्तमान में भी लाभान्वित होवें । यानी भरा-पूरा सांसारिक सुखमय जीवन जीते हुए भी दोष रहित सत्य प्रधान और मुक्ति अमरता वाला सर्वोत्तम मर्यादित जीवन विधान भी अर्थात् दोनों ही साथ-साथ मिलता-रहता-चलता है ।
यह तत्त्वज्ञान वर्तमान में पूरे भू-मण्डल पर अन्य किसी के भी पास नहीं हैं। यदि कोई कहता है कि मेरे पास है तो उसकी इस घोषणा को सप्रमाण प्रैक्टिकली (प्रायोगिक रूप से) भी गलत प्रमाणित करने के लिए तैयार भी तो हूँ और इस बात का वचन भी तो देता हूँ कि मैं अपने उपर्युक्त कथन को गलत प्रमाणित करने वाले के प्रति समर्पित-शरणागत हो जाऊँगा। मगर सत्य प्रमाणित होने पर उसे भी समर्पित-शरणागत करना-होना होगा।
अब यदि कोई मेरे इस बात को निन्दा करना, शिकायत करना, नीचा दिखाना या अहंकारी होना कहे, तो जनकल्याणार्थ मुझे आपसे यह पुछना पड़ेगा कि आप हि बतावें कि यदि सच्चाई ऐसी ही हो तो मैं कहूँ क्या ? क्या समाज को धोखे में पड़े ही रहने दूँ ? समाज को सच्चाई से अवगत न कराऊँ ? नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता।
सब भगवत कृपा से ।
----------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस