सन्त ज्ञानेश्वर जी का महापुरुषत्त्व और सत्पुरुषत्त्व हेतु युवकों का आह्वान-
युवा बन्धुओं ! इस बात को अपने दिल-दिमाग से निकालकर बाहर फेंक दिया जाय कि अब ध्रुव-प्रहलाद-महाबीर-बुध्द-मूसा-ईशु-मोहम्मद-कबीर-नानक-तुलसी-मीरा-गोरखनाथ-आद्यशंकराचार्य-रामकृष्ण-विवेकानन्द आदि-आदि महापुरुष बना ही नहीं जा सकता है और यह जान लेवें कि अवश्य बना जा सकता है-मुझ सन्त ज्ञानेश्वर से मिलें और बनने-होने का प्रयास करें । मुझसे हर प्रकार का सहयोग आप को मिलेगा; आगे आवें और बनने-होने का सफल अभ्यास करें ।
युवा बन्धुओं ! यह आप की सबसे बड़ी कमजोरी है कि पहले ही यह मानकर कि 'हम' महापुरुष या सत्पुरुष या खुदा का प्यारा या भगवान् का प्रेमी या परमेश्वर का पुत्र-प्रिय सेवक बन ही नहीं सकते हैं । बन्धुओं ! मैं किस प्रकार से आपको बताऊँ, समझाऊँ कि बना जा सकता है--बिल्कुल ही बना जा सकता है । थोड़ा सा सर्वप्रथम संकल्प के साथ अपने को परमप्रभु से, एकमात्र परमप्रभु से अपने को अनन्य भाव से जोड. लेना और उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना है, शेष सब होता जायेगा और आप देखते ही देखते हो जायेंगे । वह जोड.ने वाला आप की सहायता तो मैं करूँगा फिर तो सोच किस बात का ?
खुदा या गॉड या भगवान् या यहोवा या परमेश्वर या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता सामर्थ्य या परमसत्य को साक्षी बनाकर, एकमात्र उसी परमप्रभु को साक्षी बनाकर कह रहा हूँ । उसी परमप्रभु के विशेष कृपा के आधार पर ही कह रहा हूँ कि युवा वर्ग सत्य संकल्प के साथ समाज में उसी महानता एवं सत्यता को हासिल करने के लिए आगे बढ़े । निश्चित ही वर्तमान में एक ध्रुव ही नहीं अनेकानेक ध्रुव, एक प्रहलाद ही नहीं अनेकानेक प्रहलाद, एक बुध्द ही नहीं अनेकानेक बुध्द, एक महावीर ही नहीं अनेकानेक महावीर, एक आद्य शंकराचार्य ही नहीं अनेकानेक आद्य शंकराचार्य, एक गोरखनाथ ही नहीं अनेकानेक गोरखनाथ, एक मूसा ही नहीं अनेकानेक मूसा, एक ईशु ही नहीं अनेकानेक ईशु, एक कबीर ही नहीं अनेकानेक कबीर, एक नानक ही नहीं अनेकानेक नानक, एक तुलसी ही नहीं अनेकानेक तुलसी, एक मीरा ही नहीं अनेकानेक मीरा, एक रामकृष्ण परमहंस ही नहीं अनेकानेक रामकृष्ण परमहंस, एक विवेकानन्द ही नहीं अनेकानेक विवेकानन्द आदि-आदि बना जा सकता है । आखिरकार मेरा एक ही सवाल है कि-
'आप युवक ये महापुरुष एंव सत्पुरुष क्यों नहीं हो सकते ? ‘आप थोड़ा धीरज धारण कर, गम्भीरता पूर्वक सोच-समझकर स्वयं एकान्त में बैठकर निर्णय लेवें तथा स्वयं से एक बात पूछें कि आज क्या वह परमसत्ता नहीं है ? जो इन उपर्युक्त या ऐसे ही अन्य आध्यात्मिक महापुरुषों एवं तात्त्विक सत्पुरुषों जिनका नाम यहाँ छोड. दिया गया हो या छूट गया हो, उन महापुरुषों और सत्पुरुषों जैसा भी महापुरुष और सत्पुरुष बनाने वाला वही परमसत्ता आज भी नहीं है ? आज उसमें वह शक्ति-सामर्थ्य नहीं है ? वह अवश्य है । वही सदा रहने वाला है । वही सर्व शक्तिमान है । उसके शक्ति-सत्ता में कोई भी अपना दखल नहीं जमा सकता है । वही एकमात्र परमप्रभु सबका है, सबके लिए है । वह जब जिसको जो चाहे बना दे । जितना चाहे दे दे । जहाँ चाहे वहाँ भेज दे । वह सर्व शक्तिमान है, एकमात्र वही परमप्रभु मात्र ही महापुरुषत्त्व और सत्पुरुषत्त्व प्रदाता तो है ही, मोक्षदाता भी एकमात्र वही ही है । उसके सिवाय दूसरा कोई नहीं । किसी को कुछ भी बना देने का अधिकार एकमात्र परमप्रभु का है और सदा-सर्वदा परमप्रभु में ही रहेगा भी ।
युवा बन्धुओं ! घबड़ाओ नहीं, मैंदान में आओ ! आगे बढ़ो । रूको नहीं । युवा तुम हो, कार्य को तेज गति से पूरा करने वाले तुम हो ! जाहिल मत बनो ! प्रमादी मत बनो ! उठो ! जागो ! सत्यता और श्रेष्ठत्त्व को स्वीकार करो ! क्षणिक सुख रूपी भोग-व्यसन वाला कर्मचारी-अधिकारी-नेता नहीं बल्कि महापुरुष-सत्पुरुष बनने-होने के लिए विवेकानन्द के तरह आगे बढो ।
समय की पुकार है, परमप्रभु की ललकार है ।
बनना हो तो बन ले भाई, पछताना बेकार है ॥
ऐसे सुअवसर को हाथ से मत जाने दो,
थोडे समय परिश्रम करो, सदा आनन्द मनाओ ।
सद्भावी सत्यान्वेषी युवा बन्धुओं ! आप लोग यह कह सकते हैं कि कभी ऐसा हो नहीं सकता है ! यह सब एक भ्रामक बात है । भ्रम में डालकर फँसाने वाली बात है । यह सब सदानन्द का अहंकार है परन्तु ऐसा कह ही कर आप क्या हासिल कर सकते हैं? अपने को इतना बुजदिल (कमजोर) क्यों समझते हो कि सबको सदानन्द फंसा ही लेगा ! सभी को भ्रमित ही करेगा । थोड़ा भी तो सोचो कि आखिर सदानन्द आप को फँसाता भी है, तो क्यों ? क्या अपने घर-दुवार का कार्य कराने के लिये ? आप लोग इतने कमजोर दिमाग के हो कि सदानन्द के कार्यों को जान-देख-समझ नहीं सकते हो ? इतने मूर्ख हो कि सदानन्द सबको फँसाकर खेती या व्यापार करायेगा ? यदि कराता भी है तो क्या वह खेती-बारी-व्यापार अपना और अपनों मात्र के लिये अथवा आप सब और आप सब के अपना होने-रहने वाले के लिये ? आप को ऑंख नहीं है, दिल-दिमाग नहीं है ? सूझ-बूझ नहीं है कि सदानन्द आप को फँसा कर क्या कर करा रहा है ? वास्तविकता तो आप लोग पहले जानें--
यह कहना बेकार है कि सदानन्द का अहंकार है ।
आप बन्धुओं दुनिया के दुर्जनों को 'ठीक' करने के लिये, सज्जन बनाने के लिए बुलाये जा रहे हो, तो क्या सदानन्द सत्य नहीं होगा, तो आप लोग इसको 'ठीक' नहीं कर सकते हो, यदि आप सत्य हो और सदानन्द असत्य होगा, तो आप लोग उसी परमप्रभु की कृपा से सदानन्द को भी 'ठीक' कर दीजियेगा लेकिन असलियत तो यही है कि --
सदानन्द तो कहता है कि मेरा क्या अहंकार है, भगवन् की पुकार है ।
आना है तो आ जाओ प्यारे, बातें अधिक बेकार है ॥
बन्धुओं ! इतना तो आप अवश्य जानते ही होंगे कि किसी को बिना जाने-समझे अपने मनगढ.न्त बातों से निन्दित नहीं किया जाना चाहिये । यदि आप करेंगे भी तो सदानन्द का क्या बिगड़ेगा ? सदानन्द सचमुच में यदि परमप्रभु वाला ही होगा और परमप्रभु की कृपा वाला ही सदानन्द रहा तो निन्दक अपने द्वारा ही अपने को निन्दित करेगा । परमप्रभु की विशेष कृपा रही तो अब वह दिन दूर नहीं की सदानन्द परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् -काल अलम्-गॉड शब्दरूप खुदा-गॉड-भगवान् रूप अकाल पुरुष रूप परम पुरुष वाला ही सबको (जिज्ञासु भक्तों को) दिखाई देने लगेगा । सदानन्द का कार्य एकमात्र परमप्रभु वाले कार्यों का सम्पादन करना यानी 'सत्य धर्म का संस्थापना तथा उसका प्रचार-प्रसार करना तथा उसी के माध्यम सकल समाज को भगवन्मय बनाते हुये 'धर्म-धर्मात्मा-धरती' की रक्षा करना-कराना अर्थात धरती को असत्य-अधर्म-अन्याय-अनीति विहिन बनाते-रहते हुये सत्य-धर्म-न्याय-नीति प्रधान बनाना-बनवाना ।' यही सदानन्द को परमप्रभु की कृपा विशेष से ही परमप्रभु के ही इस कार्य को करना-कराना है ।'
''सदानन्द का कार्य नहीं, कार्य है भगवान् का''
युवकों आपको सदानन्द का कार्य करने के लिए पुकारा नहीं हो रहा है, बल्कि खुदा-गॉड-भगवान् के कार्य के लिए ही आप का पुकार हो रहा है । आप लोग अच्छी प्रकार से सोच समझ-कर देख सकते हैं कि दुनियाँ में जब भी, जहाँ भी जो कोई आध्यात्मिक महापुरुष और पैगम्बर, प्रोफेटस तथा सत्पुरुष जो कोई भी बना है, खुदा-गॉड-भगवान् के कार्य को करके ही बना है । अपना-पराया या संसार के कार्य करके नहीं ।
युवा बन्धुओं ! अपने पर सन्देह क्यों करते हैं ? जब आप अपने पर ही सन्देह करेंगे कि हम फंस जायेंगे, हम भटक जायेंगे, तो कार्य क्या करेंगे ? महापुरुष कैसे बनेंगे ? नहीं बन पायेंगे । इसलिये अपने पर ही संदेह करना छोड़ कर महापुरुष-सत्पुरुष बनने के लिये आगे आयें ।
सद्भावी सत्यान्वेषी युवक बन्धुओं ! आप युवकों सर्वप्रथम अपने पर आस्था रखो । अपने पर विश्वास रखो । आप युवक हो । आपमें कुछ भी कर-करा देने की क्षमता है । आप अपने युवा शरीर के क्षमता का सदुपयोग करो । आगे बढ़ो । महापुरुष बनो; सत्पुरुष बनो । आप ही पर समाज का कल्याण आधारित है । समाज का सुधार और समाज का उद्वार आप युवा बन्धुओं से ही है । मात्र शारीरिक सुख भोग-व्यसन हेतु कर्मचारी-अधिकारी-नेता बनकर अपने सर्वोत्ताम मानव जीवन को व्यर्थ गवांओ-बर्बाद मत करो । आओ आगे बढ़ो महापुरुष बनो-सत्पुरुष बनो । समय का लाभ लो ।
सदानन्द का पुकार है, आप का सुधार है । आना है तो आओ बन्दों भ्रम करना बेकार है ।
बन्धुओं ! खुदा-गॉड-भगवान् के कार्य करने में घबराते क्यों हो ? भगवान् का ही कार्य करके तो सब महापुरुष बने हैं, फिर आप को भी महापुरुष एवं सत्पुरुष हेतु भगवान् का ही कार्य करना पडेगा । एक बात मैं आप बन्धुओं से पूछना चाहूँगा कि आप बिना कार्य किए संसार में रह सकते हैं । नहीं ! नहीं !! कदापी नहीं !!! किसी न किसी का कार्य, किसी न किसी का गुलामी तो आप को करनी ही पडेगी तो फिर भगवान् का कार्य (सेवा-भाव) करने से घबराते क्यों हो ? क्या दुनियाँ वालों से कम सुविधायें और महत्ता भगवान् ही देगा ? कदापि नहीं ! दुनियाँ वाले क्या दे सकते हैं ? कुछ नहीं ! ऑंख हो तो दुनियाँ के कार्यकर्ताओं को और भगवान् के भजन-भक्ति-सेवा कर्ताओं को देख लो । दिल-दिमाग है तो समझ लो । जिस भगवान् को बिना जाने-देखे भी मात्र नाम जपते है, मात्र भजन करते है, तो उनकी भी स्थिति और सांसारिकों को भी स्थिति का; परलोक को भी अभी रहने दें, पहले लोक ही वाला तो तुलना कर-करा लेवें । यदि आप का परलोक पर विश्वास नहीं है तो फिर इन असत्य-सत्य, अधर्म-धर्म, अन्याय-न्याय तथा अनीति-नीति से क्या काम ? मगर जीवन को सत्यता-सम्पूर्णता-सर्वोच्चता चाहिये तब तो आपको मेरे यहाँ आना ही पड़ेगा क्योंकि पूरे पृथ्वी अथवा सारी धरती पर ही मेरे यहाँ के सिवाय यह (सत्यता सर्वोच्चता और सम्पूर्णता वाला मुक्ति-अमरता) कहीं भी अन्यत्र मिलता ही नहीं है ।
अगर आप अपने को ऊपर उठाने अथवा सत्यता-सर्वोच्चता-सम्पूर्णता पाने और महापुरुष-सत्पुरुष बनने हेतु आगे नहीं बढ़ोगे तब तो आप को मुझे यही कहना पड़ेगा कि खाओ-पीओ मौज मनाओ, जीते जी तू भाड. में जाओ ।
युवा बन्धुओं ! यही सुअवसर है महापुरुष बनने का । यही सुअवसर है सत्पुरुष बनने का । दुनियादारी तो मात्र मायावी जाल है, फँसाने वाला काल है । ऑंख खोल कर देख लो महापुरुषों की जीवनियाँ, सत्पुरुषों की गाथाएँ और दुनियादारी की व्यथायें । सदानन्द यदि आप को भ्रमित भी करता है तो संसार से और फँसाता है तो खुदा-गॉड-भगवान् में । अरे ! नादानों अब से भी तो सम्भल ! अब से भी तो चेत ! आप सृष्टि के सर्वोच्च-सर्वोत्ताम योनि वाले हो । इसलिए सर्वोच्च-सर्वोत्ताम परमात्मा- खुदा-गॉड-भगवान् वाले उपलब्धि को उपलब्ध करो और ध्रुव-प्रहलाद-गरुण-नारद- हनुमान आदि-आदि के तरह भक्त-सेवक और विवेकानन्द आदि के तरह महापुरुष- सत्पुरुष बनो । दुनियां में अपनी अमर गाथा स्थापित करो । इसी में जीवन की सार्थकता-सफलता है ।
सदानन्द की बात नहीं, बात है भगवान् की ।
आप सत्य हो तो आप अपने-अपने वर्ग-सम्प्रदाय-संस्था-संगठन वाले मूल सद्ग्रन्थ को हाथ में लो और आकर सदानन्द का ठीक से परीक्षण कर लो । हर प्रकार से जाँच-परख के पश्चात् सद्ग्रन्थों के सत्प्रमाणों पर सत्य ही प्रमाणित होता है तब अवश्य ही सदानन्द के 'तत्त्वज्ञान' को स्वीकार कर लें । फिर से कह रहा हूँ कि
भगवान् की पुकार है, तेरा इन्तजार है ।
आना हो तो आओ प्यारे, घबडाना बेकार है ॥
सद्भावी सत्यान्वेषी युवा बन्धुओं ! बुजदिल न बनो । कायर न बनो ! मानव शरीर का सदुपयोग करो । अपने 'हम' जीव को जानते देखते हुए मुझसे 'आत्मा-ईश्वर -ब्रह्म' नूर-सोल-ज्योति शिव शक्ति को भी जानते-साक्षात् देखते हुए उनसे अपने को जोड.कर या स्थित-स्थापित कर आध्यात्मिक महापुरुष बनो और परमात्मा-खुदा-गॉड- भगवान् से सम्बन्धित यानी समर्पित-शरणागत हो तत्त्वज्ञानी या तात्तिवक सत्पुरुष बनो, तो तुम्हें दोनों--लोक लाभ भी मिलेगा और परलोक लाभ भी । आप यह भूल जाइये कि सत्पुरुष बनने में सांसारिक परेशानियाँ झेलनी होंगी और मान भी लें कि परेशानियाँ ही झेलनी पडेंगी तो मैं डंके की चोट पर सत्यता को समक्ष रखकर कह रहा हूँ कि उतनी परेशानियाँ नहीं हैं । बहुत कम, बहुत कम, वह भी आप को उसका दु:ख नहीं होगा, उसका दु:ख भी उन्हीं अज्ञानियों को ही होगा जो मात्र दूर से--बाहरी-बाहरी रूप में देखने मे लगे हैं; बशर्ते कि आप निष्कपटता पूर्वक अपने को सर्वतोभावेन भगवद् शरणागत करते और रहते हुये आगे बढ़े तो पायेंगे कि जो दु:ख-कष्ट-परेशानियाँ दिखाई दे रही थी; वही आगे चलकर आपको यश-कीर्ति दिलाने वाली गाथाएँ हो गयी हैं।
सद्भावी सत्यान्वेषी युवा बन्धुओं ! बुजदिल न बनो । कायर न बनो ! मानव शरीर का सदुपयोग करो । अपने 'हम' जीव को जानते देखते हुए मुझसे 'आत्मा-ईश्वर -ब्रह्म' नूर-सोल-ज्योति शिव शक्ति को भी जानते-साक्षात् देखते हुए उनसे अपने को जोड.कर या स्थित-स्थापित कर आध्यात्मिक महापुरुष बनो और परमात्मा-खुदा-गॉड- भगवान् से सम्बन्धित यानी समर्पित-शरणागत हो तत्त्वज्ञानी या तात्तिवक सत्पुरुष बनो, तो तुम्हें दोनों--लोक लाभ भी मिलेगा और परलोक लाभ भी । आप यह भूल जाइये कि सत्पुरुष बनने में सांसारिक परेशानियाँ झेलनी होंगी और मान भी लें कि परेशानियाँ ही झेलनी पडेंगी तो मैं डंके की चोट पर सत्यता को समक्ष रखकर कह रहा हूँ कि उतनी परेशानियाँ नहीं हैं । बहुत कम, बहुत कम, वह भी आप को उसका दु:ख नहीं होगा, उसका दु:ख भी उन्हीं अज्ञानियों को ही होगा जो मात्र दूर से--बाहरी-बाहरी रूप में देखने मे लगे हैं; बशर्ते कि आप निष्कपटता पूर्वक अपने को सर्वतोभावेन भगवद् शरणागत करते और रहते हुये आगे बढ़े तो पायेंगे कि जो दु:ख-कष्ट-परेशानियाँ दिखाई दे रही थी; वही आगे चलकर आपको यश-कीर्ति दिलाने वाली गाथाएँ हो गयी हैं।
दूसरी सबसे बड़ी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सत्पुरुष या सर्वतोभावेन भगवत् शरणागतों को नाचीज परिवार प्रधान रहने के अपेक्षा भगवत् प्राप्त होकर सीधे भगवत् प्रधान भगवद् शरण में रहने का परम शुभ अवसर प्राप्त होता है जो मानव जीवन का चरम और परम उद्देश्य है, बशर्ते कि सत्य-धर्म के संस्थापना के बेला में धर्म-संकट को समाप्त करने हेतु प्रारम्भ में कुछ दिन-माह-साल तक ही त्याग-परेशानी या कठिनाई हो सकती है । फिर भी उसमें भी आप सचमुच यदि निष्कपटता पूर्वक हैं तो निश्चित ही आप अपने को सदा ही परमशान्ति और परम आनन्द के साथ ही साथ मुक्ति और अमरता के साक्षात् बोध से युक्त बिल्कुल ही अमन-चैन से रहेंगे । परेशानी तो मात्र देखने वालों को ही होगी । आप तो सदा आनन्दित रहेंगे । फिर थोड़े समय तक रहने वाले धर्म-संकट के पश्चात् तो आप ध्रुव, प्रहलाद, सुग्रीव, विभीषण, पाण्डव आदि की तरह सांसारिक राज सुख भी भोगेंगे और शरीर छोड.ने पर परम आकाश रूप परमधाम-अमरलोक में सदा के लिए आप का निवास सुरक्षित रहेगा ।
मेरे प्यारे युवकों ! दुनिया वालों के फेर में मत पडो । थोड़ा भी सूझ-बूझ से काम लो । सदानन्द के निन्दा से कुछ मिलने-जुलने को नहीं है । जब मिलेगा तो सदानन्द के बात को स्वीकार-ग्रहण कर रहने-चलने पर ही मिलेगा । शारीरिक सुखभोग व्यसन वाला कर्मचारी-अधिकारी-नेता नहीं अपितु महापुरुष-सत्पुरुष बनने से आप की गाथाएँ बनेगी । भोगी-व्यसनियों की तो कहानी ही नहीं बन पाती-गाथाएँ कहाँ से बनेगी ?
सद्भावी सत्यान्वेषी युवा बन्धुओं ! यह अति सावधानी बरतने की है कि प्राय: सब योगी-साधक अथवा आध्यात्मिक महात्मा या महापुरुष जीव को ही आत्मा और आत्मा को ही परमात्मा; जीव को ही ईश्वर और ईश्वर को ही परमेश्वर; जीव को ब्रह्म और ब्रह्म को ही परमब्रह्म; सेल्फ को ही सोल (डिवाइन लाईट) और सोल या डिवाइन लाईट को ही गॉड; रूह को ही नूर और नूर को ही अल्लाहतऽला; 'हम' जीव-सूक्ष्म शरीर को ही सहज प्रकाश और सहज प्रकाश या परम प्रकाश को ही गॉड; अहम् को ही सोऽहँ- हँसो और हँसो को ही परमहंस; स्वाध्याय पध्दति को ही योग या अध्यात्म की पध्दति और योग-अध्यात्म की साधना और आध्यात्मिक-साधना को ही तत्त्वज्ञान या भगवद्ज्ञान या सत्य ज्ञान; योग पध्दति या अध्यात्म पध्दति को ही विद्द्यातत्त्वं पध्दति; ब्रह्मानन्द-चिदानन्द को ही सच्चिदानन्द को ही सच्चिदानन्द; आनन्दानुभूति मात्र को ही शान्ति और आनन्दानुभूति-दोनों और शान्ति और आनन्दानुभूति को ही परमशान्ति और परम आनन्द से युक्त मुक्ति और अमरता का बोध; अनुभूति को ही बोध; स्वरूपानन्द को ही आत्मानन्द और आत्मानन्द को ही परमानन्द-सदानन्द (शाश्वत् शान्ति और शाश्वत् आनन्द); स्वाध्यायी पुरुष को ही योगी-आध्यात्मिक-महात्मा और आध्यात्मिक महात्मा को ही अवतारी (परमात्मा के अवतार); महापुरुष को ही परमपुरुष या सत्पुरुष तथा स्वाध्यायी गुरु को ही तात्त्विक सद्गुरु आदि घोषित करते-कराते हुए अपने और अपने अनुयायियों द्वारा इसी मिथ्या अधूरा एवं भ्रामक जानकारी का प्रचार-प्रसार करते-कराते हुए भगवान् के अवतार रूप सद्गुरु पूजा-पाठ आदि करवाने लगते हैं । यह बात मात्र आज के ही योगी-साधक आध्यात्मिकों में ही नहीं अपितु प्राचीन काल से ही ऐसी ही बात रही और चली आ रही है, जब--कि यह बिल्कुल ही भ्रामक, अधूरा एवं मिथ्या है । ऐसा होना नहीं चाहिए । जनमानस को सदुपदेश देना चाहिए । कभी भ्रामक उपदेश-मिथ्या झूठा उपदेश देकर भरमा-भटका कर अपने मिथ्या महत्वाकांक्षा के पूर्ति हेतु जनमानस का धन-धरम दोनों का दोहन- शोषण भी करते हैं और उन्हें भगवत् प्राप्ति और मुक्ति-अमरता की प्राप्ति से बंचित भी करते कराते हैं । भोले-भाले भगवद् जिज्ञासु भरम भटक कर इन्हीं आधा-अधूरे झूठे गुरुओं में सट-चिपककर धर्मच्युत हो रहे हैं । इन भरमे-भटके भगवत् प्रेमीजनों के रक्षा आन्दोलन में आप सच्चे बन्धुओं को मेरा साथ-सहयोग नहीं देना चाहिए ? देना चाहिए। अवश्य ही देना चाहिए फिर देर क्यों ? आइए और परमपुनीत कार्यरूप धर्म- धर्मात्मा-धरती रक्षा कार्य में जुड.कर महापुरुष-सत्पुरुष बनिए ।
भोगी-व्यसनियों में देखो तो सही और वृध्दों से पूछकर भी पता तो करो कि दादा के दादा का नाम कितने को पता है ? पता चलेगा कि लाखों-करोड़ों में शायद कोई हो जिसे पता हो तो क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि पोता के पोता होने तक आप सभी का भी नामों निशान तक भी नहीं रह पायेगा । सब कुछ ही आजके अपनों द्वारा ही खारिज-दाखिल के रूप में मिटा दिया जायेगा । आप सबका सर्वनाश हो जाता है मगर भक्त-सेवकों को भगवान् नाश नहीं होने देता-अमरत्त्व देता है । गरुण-नारद-ध्रुव-प्रहलाद-हनुमान-सेवरी-जटायु- काकभुसुण्डी-उध्दव-अर्जुन-कुब्जा-गोपियाँ-तुलसी-मीरा आदि-आदि प्राय: समस्त भगवद् भक्त-सेवकों-प्रेमियो-सन्त-महात्माओं-नूह-हूद-लूत-इब्राहिम-मूसा-ईशु-मुहम्मद आदि-आदि प्रॉफेट-पैगम्बरों आदि-आदि को भी देख लो ।
इसलिए आप युवा बन्धुजन भी भोग-व्यसन वाला जीवन त्यागकर भोग-व्यसन वाले जीवन से बहुत-बहुत-बहुत ही ऊपर उठकर मुझसे मिलकर तत्त्वज्ञान के माध्यम से भगवद् समर्पित-शरणागत होता हुआ संसार-शरीर-जीव-आत्मा (ईश्वर-ब्रह्म-ज्योति शिव) चारों की ही पृथक्-पृथक् उत्पत्ति-स्थिति और लय-विलय प्रलय को साक्षात् दर्शन सहित सुनिश्चित और सुस्पष्ट यथार्थत: जानकारी प्राप्त करते हुए परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-खुदा-गॉड-भगवान् गीता वाले विराट पुरुष का भी बात-चीत सहित सद्ग्रन्थों द्वारा सत्प्रमाणित रूप में साक्षात् दर्शन प्राप्त करते हुए सारी धरती से ही असत्य-अधर्म-अन्याय-अनीति को समाप्त करते हुए उसके स्थान पर सत्य-धर्म-न्याय-नीति को पुन: स्थापित करना-कराना है । इसी को दूसरे रूप में धर्म- धर्मात्मा-धरती रक्षार्थत्व परमप्रभु के परमपुनित कार्य में लग-लगा कर अपने को ध्रुव- प्रहलाद-गरुण-नारद-लक्ष्मण-हनुमान-सुग्रीव-विभीषण-उध्दव-अर्जुन-गोपियाँ-कुब्जा और भगवद् भक्त-सेवक सन्त कबीर-तुलसी-नानक-मीरा आदि-आदि । महात्मागण महावीर-बुध्द-मूसा-दाऊद-इब्राहिम-यीशु-मुहम्मद आदि प्रॉफेट्स-पैगम्बर बनते-होते हुए भगवत् कृपा से विवेकानन्द जैसे ही महापुरुष-दिव्य पुरुष और सत्पुरुष बनकर पूर्व की तरह वर्तमान में भी स्थिति-स्थापित होवें । मैं (सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 'सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद्', श्रीहरि द्वार आश्रम, रानीपुर मोड.-रेलवे क्रासिंग से उत्तर-हिल बाई पास रोड. पर-पास ही हरिद्वार-उत्तरांचल फोन नं-1334- 224580) आप सभी को हर प्रकार के सहयोग के साथ ही साथ पूर्ति-कीर्ति-मुक्ति की पूरी-पूरी जिम्मेदारी जो ले रहा हूँ । फिर तो सोचना-समझना-विचार करने की बात ही कहाँ रह गई । इसे अपनाने के लिए तुरन्त ही आगे बढ.ना चाहिए--आगे बढ.ना ही चाहिए-बिल्कुल ही तुरन्त ही आगे बढ.ना चाहिए । ऐसे परम लाभ देने वाले परमशुभ अवसर को जाने नहीं देना चाहिए; तुरन्त ही स्वीकार करना चाहिए । मानव जीवन की सार्थकता-सफलता भी तो यही है-बिल्कुल ही यही ही है; अन्यथा सब व्यर्थ है ।
------------------सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस